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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान
प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
भारतीय संघीय व्यवस्था और क्षेत्रीय राजनीतिक दल
भारतीय संघीय व्यवस्था का निर्धारण भारतीय संविधान के द्वारा होता है। संविधान में उल्लिखित है कि 'भारत राज्यों का एक संघ होगा'। वस्तुतः भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र में संघात्मक ढाँचे की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भारत का राजनीतिक एकीकरण तमाम रियासतों, रजवाड़ों व प्रान्तों को मिलाकर किया गया है। इन सब में भाषायी, जातीय, क्षेत्रीय, सांस्कृतिक विविधता पायी जाती है। ऐसे में सभी राज्यों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित रखना एक बड़ी चुनौती थी जिसका मार्ग संघात्मक व्यवस्था के रूप में निकाला गया। भारत में संसदीय लोकतन्त्र और बहुदलीय प्रणाली को अपनाया गया जोकि संघात्मक व्यवस्था के महत्वपूर्ण लक्षण हैं। बहुदलीय प्रणाली के कारण भारत में राष्ट्रीय दलों के साथ अनेक क्षेत्रीय दल भी अस्तित्व में आये। इन क्षेत्रीय दलों की भूमिका का परीक्षण भारतीय संघात्मक व्यवस्था के सन्दर्भ में किया जाए तो हम पाते हैं कि क्षेत्रीय दलों को न ही पूर्ण रूप से संघात्मक व्यवस्था के लिए खतरा बताया जा सकता है और न ही इन्हें विशुद्ध रूप से संघीय व्यवस्था हेतु उपयोगी माना जा सकता है।
वस्तुत: इस सन्दर्भ में किसी निष्कर्ष तक पहुँचने से पूर्व हमें इनके संघीय व्यवस्था के प्रति नकारात्मक व सकारात्मक पहलुओं की विस्तृत विवेचना करना आवश्यक है, जोकि निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णित है -
भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रति क्षेत्रीय दलों के सकारात्मक पक्ष - भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रति क्षेत्रीय दलों के निम्नलिखित सकारात्मक पक्ष दृष्टिगोचर होते हैं
1. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व - क्षेत्रीय दल भारतीय संघीय व्यवस्था व संसद में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के अगुआहार हैं। इनके माध्यम से भारत के विविध क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है। इससे भारतीय संघ की शक्ति प्राप्त होती है और सुदूरवर्ती क्षेत्रों की समस्याओं का निराकरण सुलभ हो पाता है, साथ ही साथ क्षेत्रीय विशिष्टताओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त होने की संभावनाऐं भी बढ़ती हैं।
2. क्षेत्रीय असन्तोष व तनावों के शिथलीकरण में उपयोगी - क्षेत्रीय दलों को संघीय स्तर पर प्रतिनिधित्व प्राप्त होने के चलते क्षेत्रीय स्तर पर व्याप्त होने वाले तत्कालिक असन्तोष व तनावों से भी व्यवस्था को अवगत होने का अवसर प्राप्त होता है। क्षेत्र स्तर, तक केंन्द्रीय सरकार व राष्ट्रीय दलों की पहुँच उतनी प्रभावपूर्ण नहीं होती जितनी कि क्षेत्रीय दलों की होती है। अतः क्षेत्रीय दलों के माध्यम से क्षेत्र में व्याप्त विभिन्न असन्तोष के मुद्दों व तनावों के कारणों का ज्ञान प्राप्त होता है और सरकार द्वारा इनके निराकरण का प्रयास किया जाता है। वस्तुतः यह दल संघ व राज्य के मध्य सेफ्टी वाल्व की भूमिका का निर्वाह करते हैं और इस प्रकार संघीय व्यवस्था की रक्षा में सहायक सिद्ध होते हैं।
3. क्षेत्रीय हितों का समूहीकरण एवं स्पष्टीकरण - राष्ट्रीय स्तर पर कई बार क्षेत्रीय हितों की अनदेखी व अनभिज्ञता की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं। ऐसे में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण प्रतीत होती है। क्षेत्रीय दलों द्वारा क्षेत्रीय हितों का बेहतर ढंग से समूहीकरण व स्पष्टीकरण किया जाता है। इसके चलते इन क्षेत्रीय हितों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त होती है और इनकी अभिवृद्धि व पूर्ति के प्रयास तेजी से किये जाने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। क्षेत्रीय दलों द्वारा क्षेत्र विशेष के हितों को बेहतर ढंग से उठाया जाता है और व्यवस्था के समक्ष इन्हें अधिक स्पष्ट ढंग से प्रस्तुत किया जाता है ताकि इनकी पूर्ति हो सके। इस प्रकार इस दृष्टि से भी क्षेत्रीय दल संघात्मकता हेतु उपयोगी प्रतीत होते हैं।
4. एक दलीय बहुमत प्राप्त होने पर सरकार के गठन में उपयोगी - भारतीय संघीय व्यवस्था के राजनीतिक इतिहास पर दृष्टिगत करें तो हम पाते हैं कि क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की केन्द्र में व विभिन्न राज्यों में एकदलीय बहुमत प्राप्त न होने की स्थिति में सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संघीय सरकार (केन्द्र सरकार) के गठन में क्षेत्रीय दलों की सहभागिता संघात्मक प्रकृति को अनुकूलता प्रदान करती है और यह प्रवृत्ति संघ के सुचारू क्रियान्वयन की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होती है। संघीय सरकार में क्षेत्रीय दलों की भागीदारी से राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय सहभागिता सुनिश्चित होती है। इससे संघ के प्रति राज्यों की निष्ठा व विश्वास में वृद्धि होती है।
भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रति क्षेत्रीय दलों के नकारात्मक पक्ष - भारतीय संघीय व्यवस्था में क्षेत्रीय दलों के जहाँ कई सकारात्मक पक्ष दिखते हैं तो वहीं दूसरी ओर इनके कई नकारात्मक पक्ष भी हैं, जोकि संघीय व्यवस्था के लिए संकट उत्पन्न करते रहते हैं, इनका विस्तृत विवेचन निम्नलिखित है -
1. अलगाववाद की माँगें - भारतीय राजनीतिक इतिहास में क्षेत्रीय दलों की यह एक प्रबल नकारात्मक प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है, जोकि आज भी परिलक्षित होती रहती है। क्षेत्रीय दल अक्सर सस्ती लोकप्रियता व अपना जनाधार बढ़ाने के उद्देश्य से अलगाववाद की आग को हवा देते रहते हैं। इस प्रकार के क्षेत्रीय दल जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश, इत्यादि राज्यों में अपना खासा प्रभाव रखते हैं। इनके द्वारा समय-समय पर संघ से पृथक स्वायत्त राज्य की माँग तक की जाती रही है। यह प्रवृत्ति भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए गम्भीर संकट उत्पन्न करती रहती है। उदाहरणस्वरूप 'कश्मीर' में अलगाववादी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की गतिविधियों का उल्लेख किया जा सकता है, जोकि राष्ट्रद्रोह की गतिविधियों से भी परहेज नहीं करते और भारतीय संघीय व्यवस्था के समक्ष खुली चुनौती प्रस्तुत करते रहते हैं। अतः अपने इस रूप में यह दल निःसन्देह संघीय व्यवस्था के समक्ष घोर संकट के रूप में दिखाई पड़ते हैं।
2. राज्यों के विभाजन की प्रवृत्ति को बढ़ावा - क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघ के विभिन्न राज्यों में विकास के नाम पर विभाजन व पृथक राज्य की माँगों को हवा देते रहते हैं। वस्तुतः विकास व उपेक्षा का मुद्दा तो ठीक है परन्तु इसका समाधान पृथक राज्य के रूप में हीं देखना कुत्सित राजनीतिक हितों व सरलता से सत्ता प्राप्ति की अभिलाषा को व्यक्त करता है। उदाहरणस्वरूप में 'झारखण्ड मुक्ति मोर्चा', 'असम गढ़ परिषद', इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। 'झारखण्ड' का क्षेत्र बिहार के अति पिछड़े व उपेक्षित क्षेत्रों में से था। 'झारखण्ड मुक्ति मोर्चा' ने इस क्षेत्र के विकास के नाम पर पृथक झारखण्ड राज्य की माँग की परन्तु पृथक झारखण्ड राज्य बनने व निरन्तर सत्ता में रहने के बावजूद इस क्षेत्र के हालातों में कोई सराहनीय सुधार नहीं हुए हैं। यह प्रवृत्ति भारतीय संघ के लिए गम्भीर संकट प्रतीत होती हैं क्योंकि राज्य विभाजन की माँग एकीकरण की विरोधी है और यह भारतीय संघ को स्वतन्त्रता से पूर्व की बिखराव की स्थिति में पहुँचा सकती है।
3. क्षेत्रीयतावाद व भाषावाद को बढ़ाना - क्षेत्रीय राजनीतिक दल क्षेत्रीय प्रभुता, भाषा, संस्कृति की सर्वोच्चता से प्रेरित होते हैं और इसके चलते उनकी दृष्टि में राष्ट्रीयता का कोई महत्व नहीं रह जाता। उदाहरणस्वरूप - भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा 'हिन्दी' है परन्तु दक्षिण के सभी दल हिन्दी की अनिवार्यता का एक सुर में विरोध करते हैं। परिणामस्वरूप भारत में आज भी भाषायी एकता स्थापित नहीं हो सकी है। इसी प्रकार क्षेत्र व भाषा के नाम पर जनता में विद्वेष को भी यह बढ़ावा देते रहते हैं। यह लक्षण संघात्मकता के लिए एक गंभीर खतरा है। भारत में आज भी भाषा व क्षेत्र के नाम पर हिंसा होती रहती है जिसके उत्तरदायी क्षेत्रीय राजनीतिक दल ही हैं।
4. राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा की प्रवृत्ति - भारत में क्षेत्रीय दलों द्वारा क्षेत्रीय हितों व अपने दलीय हितों व स्वार्थों को अधिक प्रमुखता दी जाती है, जिसके चलते राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा होती है। इस प्रवृत्ति के चलते 'भारत' और 'भारतीयता' की भावना को ठेस पहुँचती है और राज्य स्वायत्तता, राज्यों की सर्वोच्चता की होड़ को बढ़ावा मिलता है। यह प्रवृत्ति संघ में आपसी वैमनस्य और तनाव को बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष - इस प्रकार उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर निष्कर्षतया यह कहा जा सकता है कि भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए क्षेत्रीय दलों की भूमिका मिलीजुली है। एक ओर जहाँ ये संघीय व्यवस्था के सहयोगी प्रतीत होते हैं तो वहीं दूसरी ओर यह संघीय व्यवस्था के लिए संकट भी प्रतीत होते हैं परन्तु दोनों ही पक्षों का विश्लेषण करते हुए निष्कर्षतया यह कहा जा सकता है कि क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए एक ऐसे सहयोगी हैं, जोकि स्वयं में एक संकट के रूप में विद्यमान है और अधि कांशतया यह भारतीय संघात्मक व्यवस्था के लिए संकट ही अधिक प्रतीत होते हैं।
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- प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
- प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
- प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
- प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
- प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
- प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
- प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
- प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
- प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
- प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
- प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
- प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
- प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
- प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
- प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
- प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
- प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
- प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
- प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
- प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
- प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।